ग़ज़ल का सिर पैर और …पूँछ

लगभग सभी हिन्दी भाषी जो कविता में रुचि रखते हैं, हिन्दी संगीत में रुचि रखते हैं, किसी न किसी रूप में ग़ज़ल में भी रुचि रखते हैं। जो लोग उर्दू-दाँ नहीं भी हैं और महदी हसन, ग़ुलाम अली की गाई कुछ पेचीदा ग़ज़लें नहीं भी समझ पाते, उनके लिए पंकज उधास अवतार सरीखे आए। उन्होंने सरल ग़ज़लों को सरल धुनों में गाया और ग़ज़ल भारत में जन-जन की चहेती हो गई। फिर अपने जगजीत सिंह तो हैं ही ग़ज़लों के बादशाह — कौन होगा जिसके म्यूज़िक कलेक्शन में जगजीत सिंह के सीडी-कसेट नहीं होंगे।

ग़ज़ल क्या है

चलिए बात करते हैं कि ग़ज़ल क्या है। ग़ज़ल शे’रों का एक समूह है जिसके शुरू में मतला होता है, आख़िर में मक़ता होता है, मक़ते में अक़्सर शायर का तख़ल्लुस होता है। पूरी ग़ज़ल में एक सा बहर होता है। क़ाफ़िया ज़रूर होता है, रदीफ़ हो या न हो। यानी ग़ज़ल हमरदीफ़ भी हो सकती है और ग़ैरमुदर्रफ़ भी।

एक मिनट! एक मिनट! कुछ ज़्यादा उर्दू हो गई, है न? चलिए इसको ज़रा आसान बनाते हैं एक मिसाल की मदद से। नासिर क़ाज़मी की इस सीधी-सादी ग़ज़ल को लीजिए (ग़ज़ल यहाँ सुन सकते हैं)।

दिल धड़कने का सब याद आया
वो तेरी याद थी अ याद आया

आज मुश्किल था सम्भलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अज याद आया

हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़सत हुए त याद आया

बैठ कर साया-ए-गुल में ‘नासिर’
हम बहुत रोये वो ज याद आया

Rhyming sequence पर ध्यान दें — AA-BA-CA-DA….

शे’र – ग़ज़ल का हर शे’र अपने आप में दो पंक्तियों की पूरी कविता होती है। यानी हर शे’र को अलग से प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रायः ग़ज़ल में एक कहानी या कविता सा लगातार प्रवाह भी नहीं होता। यानी आप अश’आर (शे’रों) को ऊपर नीचे भी कर सकते हैं और उन की संख्या को घटा बढ़ा भी सकते हैं। हर शे’र की पहली पंक्ति को सुनाना, दोहराना, दूसरी लाइन का सस्पेन्स बिल्ड करना, फिर दूसरी लाइन पर वाहवाही लूटना एक अच्छे शायर का हुनर है, और कई चुटकुलों की पृष्ठभूमि भी।

मतला – ग़ज़ल के पहले शे’र को मतला कहते हैं। इसकी दोनों पंक्तियों का समान अन्त होता है (तुकबन्दी)। यही अन्त बाक़ी सभी शे’रों की दूसरी लाइन का होता है। ग़ज़ल के मतले से ही उस के बहर, रदीफ़ और क़ाफिए का पता चलता है।

बहर – हर पंक्ति की लंबाई एक सी होती है और इस लंबाई को बहर कहते हैं। ग़ज़ल ऊपर लिखी ग़ज़ल की तरह मध्यम बहर की हो सकती है, या फिर “अपनी धुन में रहता हूँ / मैं भी तेरे जैसा हूँ” की तरह छोटे बहर की, या “ऐ मेरे हमनशीं, चल कहीं और चल इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं / बात होती गुलों की तो सह लेते हम अब तो काँटों पे भी हक़ हमारा नहीं” की तरह लम्बे बहर की।

रदीफ़ – हर शे’र के अन्त में आने वाले समान शब्द/शब्दों को रदीफ़ कहते हैं। ऊपर लिखी ग़ज़ल में रदीफ़ है “याद आया”। एक से रदीफ़ वाली ग़ज़लें हमरदीफ़ कहलाती हैं। कुछ ग़ज़लें बिना रदीफ़ की होती हैं, यानी ग़ैर-मुदर्रफ़, जैसे “दैरो हरम में बसने वालो / मैख़ानों में फूट न डालो।”।

क़ाफ़िया – रदीफ़ से पहले आने वाले मिलते जुलते शब्द को क़ाफ़िया कहते हैं। इस ग़ज़ल का क़ाफ़िया है अब, अजब, तब, आदि।

मक़ता – ग़ज़ल के आखिरी शे’र को मक़ता कहते हैं। इसमें अक़्सर शायर का तख़ल्लुस यानी उपनाम बताया जाता है। जैसे ऊपर की ग़ज़ल में “नासिर”, या अपने रवि भाई की ग़ज़लों में “रवि”। आजकल कई ग़ज़लें बिना मक़ते के भी लिखी जाती हैं।

ग़ज़ल और ग़ैर-ग़ज़ल की पहचान

ग़ज़ल  क्या है, यह समझने के साथ यह समझना भी ज़रूरी है कि ग़ज़ल क्या नहीं है। कई बार हम मशहूर ग़ज़ल गायकों की गाई हर नज़्म को ग़ज़ल समझते हैं। दरअसल जगजीत सिंह, महदी हसन, गुलाम अली का गाया हर गीत, नज़्म, गाना, ग़ज़ल नहीं होता। यदि गीत में ऊपर दिया rhyming sequence (AA-BA-CA) और शे’रों का समूह न हो तो उसे ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता। जैसे कि नीचे लिखे गए गीत, जिन्हें आम तौर पर ग़ज़ल समझा जाता है, वास्तव में ग़ज़लें नहीं है।

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों में तेरा ज़िक्र भी ले आएँगे

आज जाने की ज़िद ना करो
मेरे पहलू में बैठे रहो
तुम ही सोचो ज़रा क्यों न रोकें तुम्हें
जान जाती है जब उठके जाते हो तुम

चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम
और कुछ और सितम सह ले तड़प लें रो लें

इसके विपरीत कई फिल्मी ग़ैर-फिल्मी गाने जिन्हें कुछ लोग शायद ग़ज़लें न समझते हों, वास्तव में ग़ज़लें हैं। जैसे…

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसिताँ हमारा

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं

निगाहें मिलाने को जी चाहता है
दिलो-जाँ लुटाने को जी चाहता है


यह तो हुई ग़ज़ल के सिर-पैर की बात, पर इस पोस्ट के शीर्षक में पूँछ का क्या ज़िक्र है? बताते हैं। अपने करीयर की शुरुआत में हम और हमारे मित्रगण जिस कंपनी में थे, काम कम करते थे और ग़ज़लें ज़्यादा बाँचते थे। अब शायरी तो आती नहीं थी, सो ग़ज़लों की पूँछ बना दिया करते थे। यानी बहर, रदीफ़ और क़ाफ़िया तो था ही, उसको लेकर थोड़ी तुकबन्दी की और बेकार से एक दो और शे’र जोड़ दिए।

जैसे “अब”, “अजब”, “तब” के साथ “रब” पर कुछ सोचा जाए –

कुफ़्र छूटा यूँ सितम ढ़ाए तूने
इस क़दर गुज़री कि रब याद आया।

या फिर “कब” पर

ता हयात भूलता रहा तू मुझे
याद आया भी तो कब याद आया।


ग़ज़ल इतनी लोकप्रिय हो गई है कि अब हर भाषा में ग़ज़लें लिखी जाने लगी हैं। हिन्दी में तो पहले ही लिखी जाती थी, मराठी, गुजराती, नेपाली, यहाँ तक कि अँग्रेज़ी में भी ग़ज़ल लिखी जाती है।

चलते चलते एक बात और — ग़ज़ल मूल रूप से अरबी भाषा का शब्द है और अरबी में इसका अर्थ है स्त्रियों से बतियाना।


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Comments

  1. पंकज नरुला Avatar

    रमण जी,

    गज़ल से मिलवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। हमें तो सरफरोश फिल्म का एक सीन याद आता है। सोनाली बेंद्रे, आमिर को मिलने उसके घर आती है और आमिर की भाभी कहती है कि कल गजल सुनने गया था आज गजल खुद घर आ गई है 😀

  2. पंकज नरुला Avatar

    रमण जी,

    गज़ल से मिलवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। हमें तो सरफरोश फिल्म का एक सीन याद आता है। सोनाली बेंद्रे, आमिर को मिलने उसके घर आती है और आमिर की भाभी कहती है कि कल गजल सुनने गया था आज गजल खुद घर आ गई है 😀

  3. अनूप शुक्ला Avatar

    बहुत खूबसूरत लेख लिखा.मज़ा आ गया पढ़कर.यह भी पूंछना हम भूल गये कि सिर,पैर,पूंछ के अलावा बाकी शरीर कहां है.

  4. अनूप शुक्ला Avatar

    बहुत खूबसूरत लेख लिखा.मज़ा आ गया पढ़कर.यह भी पूंछना हम भूल गये कि सिर,पैर,पूंछ के अलावा बाकी शरीर कहां है.

  5. विजय ठाकुर Avatar

    सचमुच शुक्रगुज़ार हूँ इतने सीधे सादे रूप में तो गजल कभी की तक़नीकी बाते अपन के भेजे में तो घुसी ही नहीं कभी।

  6. विजय ठाकुर Avatar

    सचमुच शुक्रगुज़ार हूँ इतने सीधे सादे रूप में तो गजल कभी की तक़नीकी बाते अपन के भेजे में तो घुसी ही नहीं कभी।

  7. जीतू Avatar

    एक अच्छी जानकारी, एक अच्छे लेख के लिये धन्यवाद. इसको विकी पर जरूर डालियेगा.
    काफी अर्से तक तो मै यह समझता रहा कि शायर का अपनी मेहबूबा से गुफ्तगूं करना ही गजल है, जो कुछ हद तक सही है. लेकिन आजकल गजल हर विषयों पर दिखती है.

  8. जीतू Avatar

    एक अच्छी जानकारी, एक अच्छे लेख के लिये धन्यवाद. इसको विकी पर जरूर डालियेगा.
    काफी अर्से तक तो मै यह समझता रहा कि शायर का अपनी मेहबूबा से गुफ्तगूं करना ही गजल है, जो कुछ हद तक सही है. लेकिन आजकल गजल हर विषयों पर दिखती है.

  9. रवि Avatar
    रवि

    ग़ज़ल की बारीकियाँ समझाने के लिए आपको धन्यवाद. परंतु वो मनुज क्या है जो रीतियाँ, परंपरा न तोड़े और नई राह न बनाए?

    हे..हे..हे..
    रवि

  10. रवि Avatar
    रवि

    ग़ज़ल की बारीकियाँ समझाने के लिए आपको धन्यवाद. परंतु वो मनुज क्या है जो रीतियाँ, परंपरा न तोड़े और नई राह न बनाए?

    हे..हे..हे..
    रवि

  11. Raman Avatar

    बहुत ही उम्दा लेख है.. उर्दू शायरी की बाकी बारीकियों के बारे में भी जरूर लिखें जैसे कि ..‍

    – नुक्ते वाले अक्षरों (क़,ख़,ग़,ज़ ..) का सही उच्चारण
    ‍- इज़ाफ़त (ए) और (ओ) का प्रयोग
    ‍- अरबी और फ़ारसी मूल के शब्दों के बहुवचन (अशआर, ग़ज़लियात …)
    – ऐन और छोटी हे का उच्चारण (शे’र, वग़ैरह या वग़ैरा या वग़ैरः, )

    वैसे उर्दू लिपि लिखने के लिये आप किस एडीटर का प्रयोग कर रहे हैं?

  12. Raman Avatar

    बहुत ही उम्दा लेख है.. उर्दू शायरी की बाकी बारीकियों के बारे में भी जरूर लिखें जैसे कि ..‍

    – नुक्ते वाले अक्षरों (क़,ख़,ग़,ज़ ..) का सही उच्चारण
    ‍- इज़ाफ़त (ए) और (ओ) का प्रयोग
    ‍- अरबी और फ़ारसी मूल के शब्दों के बहुवचन (अशआर, ग़ज़लियात …)
    – ऐन और छोटी हे का उच्चारण (शे’र, वग़ैरह या वग़ैरा या वग़ैरः, )

    वैसे उर्दू लिपि लिखने के लिये आप किस एडीटर का प्रयोग कर रहे हैं?

  13. रमण कौल Avatar
    रमण कौल

    पढ़ने और सराहने के लिए सब का तहे-दिल से मशक़ूर मशकूर हूँ। आप लोग बिलकुल सही हैं। ग़ज़ल आजकल बहुत लड़कियों का नाम होता है। ग़ज़ल लीक से हट कर शैली में और लीक से हट कर विषयों पर लिखी जाती है। ग़ज़ल का शरीर तो बीच के शे’रों को ही कहा जा सकता है (वैसे उर्दू में “शरीर” का अर्थ है “शरारती”)। उर्दू लिखने के लिए यूनिपैड (unipad.org) अच्छा टूल है जिसे मैं हिन्दी के लिए भी प्रयोग करता हूँ (win-98 में; win-xp पर ime1 की आदत ड़ाल रहा हूँ)। जहाँ तक नुक़्तों वग़ैरा का सवाल है, वो कहानी फिर सही।

  14. रमण कौल Avatar
    रमण कौल

    पढ़ने और सराहने के लिए सब का तहे-दिल से मशक़ूर मशकूर हूँ। आप लोग बिलकुल सही हैं। ग़ज़ल आजकल बहुत लड़कियों का नाम होता है। ग़ज़ल लीक से हट कर शैली में और लीक से हट कर विषयों पर लिखी जाती है। ग़ज़ल का शरीर तो बीच के शे’रों को ही कहा जा सकता है (वैसे उर्दू में “शरीर” का अर्थ है “शरारती”)। उर्दू लिखने के लिए यूनिपैड (unipad.org) अच्छा टूल है जिसे मैं हिन्दी के लिए भी प्रयोग करता हूँ (win-98 में; win-xp पर ime1 की आदत ड़ाल रहा हूँ)। जहाँ तक नुक़्तों वग़ैरा का सवाल है, वो कहानी फिर सही।

  15. मत्सु Avatar
    मत्सु

    वाह, मा शा’ल्लाह~!! रमण साहब!

    बिलकुल शान-ओ-शौक़त का है, आपका दर्स-ए-ग़ज़ल!
    और आपकी यह नई कोशिश देखके अच्छी लगी
    जोकि ( ع ) का सही तलफ़्फ़ुज़ ज़ाहिर तौर लिखने को ( ’) का इस्ते’माल करते हैं न, आप.
    लुत्फ़ भी आया, मैं भी आगे ऐसे लिखूँगा.

    پھر ایک بات کہوں تو اس لفظ “مشکور” کے سلسلے، جو اوپر والے آپ کے کامینٹ میں لکھے ہے۔
    میرے فہم کے مطعبق، شاید آپ نے [*] کے معنی سے یہ لفظ رکھا ہو گا۔ [*thankful]
    میری خیال سے یہ الفاظ رکھے جائں نتو بہتر ہو گا؛ «شاکِر» یا «مُتَشََکَّر»۔
    چونکہ “مشکور” والی صورت کا لفظ مطلب سے {*} ہوتا ہے۔ {*passive}
    مثلاً معلوم، مشہور، معشوق، محبوب، مدہوش، وغیرہ۔۔۔

  16. मत्सु Avatar
    मत्सु

    वाह, मा शा’ल्लाह~!! रमण साहब!

    बिलकुल शान-ओ-शौक़त का है, आपका दर्स-ए-ग़ज़ल!
    और आपकी यह नई कोशिश देखके अच्छी लगी
    जोकि ( ع ) का सही तलफ़्फ़ुज़ ज़ाहिर तौर लिखने को ( ’) का इस्ते’माल करते हैं न, आप.
    लुत्फ़ भी आया, मैं भी आगे ऐसे लिखूँगा.

    پھر ایک بات کہوں تو اس لفظ “مشکور” کے سلسلے، جو اوپر والے آپ کے کامینٹ میں لکھے ہے۔
    میرے فہم کے مطعبق، شاید آپ نے [*] کے معنی سے یہ لفظ رکھا ہو گا۔ [*thankful]
    میری خیال سے یہ الفاظ رکھے جائں نتو بہتر ہو گا؛ «شاکِر» یا «مُتَشََکَّر»۔
    چونکہ “مشکور” والی صورت کا لفظ مطلب سے {*} ہوتا ہے۔ {*passive}
    مثلاً معلوم، مشہور، معشوق، محبوب، مدہوش، وغیرہ۔۔۔

  17. Raj Kaushik Avatar

    रमन जी,

    बहुत बढ़िया लिख़ा है।

    राज कौशिक
    सिड़नी (ऑस्‍ट्रेलिया)

  18. Raj Kaushik Avatar

    रमन जी,

    बहुत बढ़िया लिख़ा है।

    राज कौशिक
    सिड़नी (ऑस्‍ट्रेलिया)

  19. रमण कौल Avatar

    धन्यवाद मत्सु और राज। मत्सु, आप का शुक्रिया ग़लती पकड़ने के लिए। मशकूर में “क” के नीचे नुक्ता नहीं होना चाहिए।

  20. रमण कौल Avatar

    धन्यवाद मत्सु और राज। मत्सु, आप का शुक्रिया ग़लती पकड़ने के लिए। मशकूर में “क” के नीचे नुक्ता नहीं होना चाहिए।

  21. वैभव पाण्डेय Avatar

    बहुत खुब! मजा ही आ गया. क्या आप मुझे बता सकते है कि मै z or Z कैसे लिख सकते है. मै तख्ती का इस्तेमाल करता हूँ परंतु मुझे अभी तक कुछ तोड़ नही मिला है. मदद करें.

  22. वैभव पाण्डेय Avatar

    बहुत खुब! मजा ही आ गया. क्या आप मुझे बता सकते है कि मै z or Z कैसे लिख सकते है. मै तख्ती का इस्तेमाल करता हूँ परंतु मुझे अभी तक कुछ तोड़ नही मिला है. मदद करें.

  23. […] चिट्ठों की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है उनका अनौपचारिकता का लेखन। लिखते हुए भाई लोगों को इस बात की चिन्ता नहीं रहती कि सुन्दर लिख रहा हूँ कि नहीं। कहीं कुछ नियमों के बाहिर तो नहीं लिख दिया। कहीं संपादक की कैंची ज्यादा तो नहीं चल जाएगी मेरे लेख पर। लेख छपेगा भी नहीं। अपने मन के मालिक हम खुद। जब छपास पीड़ा हुई, चाहे अमित की २४x७ की रूटीन हो या कालीचरण गॉड के बारह बजे, बस कभी भी ब्लॉगर या फिर वर्डप्रैस पर जाकर कीबोर्ड की चटक चटक चटाकाई और एक ठौ बढ़िया वाला लेख अंतर्जाल पर आपके नाम से आपकी दूकान में प्रकाशित हो गया। ब्लॉगविधा के बिना नारद कुवैत में बैठे बैठे अपनी नई किताब कहाँ छापते। वैश्विक गणतंत्र का इसे बड़ा उदाहरण क्या होगा। पर इससे हटकर कभी कभी फॉरमल लेखन का प्रयास किया तो पाया कि ससुरा बहुतै ही मुश्किल है। निरंतर के समय इस का अहसास हुआ था व समझ में आया था कि भाई चिट्ठे लिख कर ज्यादा मत उछलो लिखनें के अभी और भी मूकाम बाकी हैं। यदि आप चिट्ठाकार बंधूओं में अच्छे लेखन के उदाहरण देखना चाहते हैं तो देश दुनिया मेरा सबसे प्रिय ब्लॉग है। रमण जी कि गज़ल का सिर पैर ब्लॉग व फॉरमल लेखन के सुरुचिपूर्ण मिश्रण का सुंदर प्रयास है। यह सब मैं क्यूँ लिख रहा हूँ। अरे यार पिछले दो घंटे से में अक्षरग्राम पर एक प्रविष्टि लिखी काफी अच्छा लगा पर टाईम ज्यादा लगता है। दुःखता है। और इस वाली की लिखने में पंद्रह मिनट लगे। […]

  24. […] चिट्ठों की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है उनका अनौपचारिकता का लेखन। लिखते हुए भाई लोगों को इस बात की चिन्ता नहीं रहती कि सुन्दर लिख रहा हूँ कि नहीं। कहीं कुछ नियमों के बाहिर तो नहीं लिख दिया। कहीं संपादक की कैंची ज्यादा तो नहीं चल जाएगी मेरे लेख पर। लेख छपेगा भी नहीं। अपने मन के मालिक हम खुद। जब छपास पीड़ा हुई, चाहे अमित की २४x७ की रूटीन हो या कालीचरण गॉड के बारह बजे, बस कभी भी ब्लॉगर या फिर वर्डप्रैस पर जाकर कीबोर्ड की चटक चटक चटाकाई और एक ठौ बढ़िया वाला लेख अंतर्जाल पर आपके नाम से आपकी दूकान में प्रकाशित हो गया। ब्लॉगविधा के बिना नारद कुवैत में बैठे बैठे अपनी नई किताब कहाँ छापते। वैश्विक गणतंत्र का इसे बड़ा उदाहरण क्या होगा। पर इससे हटकर कभी कभी फॉरमल लेखन का प्रयास किया तो पाया कि ससुरा बहुतै ही मुश्किल है। निरंतर के समय इस का अहसास हुआ था व समझ में आया था कि भाई चिट्ठे लिख कर ज्यादा मत उछलो लिखनें के अभी और भी मूकाम बाकी हैं। यदि आप चिट्ठाकार बंधूओं में अच्छे लेखन के उदाहरण देखना चाहते हैं तो देश दुनिया मेरा सबसे प्रिय ब्लॉग है। रमण जी कि गज़ल का सिर पैर ब्लॉग व फॉरमल लेखन के सुरुचिपूर्ण मिश्रण का सुंदर प्रयास है। यह सब मैं क्यूँ लिख रहा हूँ। अरे यार पिछले दो घंटे से में अक्षरग्राम पर एक प्रविष्टि लिखी काफी अच्छा लगा पर टाईम ज्यादा लगता है। दुःखता है। और इस वाली की लिखने में पंद्रह मिनट लगे। […]

  25. नितिन Avatar

    गज़ल की बारीकियों को समझाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद!!

  26. नितिन Avatar

    गज़ल की बारीकियों को समझाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद!!

  27. […] [कानपुर में जब समीरलाल जी से मुलाकात हुई तो वे ग़जल के बारे में जानकारी के लिये कोई सामग्री खोज रहे थे। हमारे पास उस समय तो कुछ नहीं मिला लेकिन खोजने पर बाद में हमारे पास ‘आइना-ए-ग़ज़ल’ किताब मिली। इस किताब को हमने नेट पर देबाशीष के ब्लाग ‘नुक्ताचीनी’ में भी देखा था तथा अपने ब्लाग पर भी लगाया था। इसमें रोज शेर अपने आप बदल जाता था। इसी से हमने ग़ज़ल के बारे में यह लेख लिखा। वैसे पहले भी हमारे रमण कौल ग़ज़ल के बारे में लिख चुके हैं। इस लेख में भी कुछ नया नहीं है लेकिन फिर से इसे टाइप किया क्योंकि इस लेख में कुछ विस्तार से जानकारी दी गयी है। जानकारी के लिये बता दें कि यह लेख डा.अर्शद जमाल ने ‘आइना-ए-ग़ज़ल’ के लिये लिखा था। […]

  28. […] [कानपुर में जब समीरलाल जी से मुलाकात हुई तो वे ग़जल के बारे में जानकारी के लिये कोई सामग्री खोज रहे थे। हमारे पास उस समय तो कुछ नहीं मिला लेकिन खोजने पर बाद में हमारे पास ‘आइना-ए-ग़ज़ल’ किताब मिली। इस किताब को हमने नेट पर देबाशीष के ब्लाग ‘नुक्ताचीनी’ में भी देखा था तथा अपने ब्लाग पर भी लगाया था। इसमें रोज शेर अपने आप बदल जाता था। इसी से हमने ग़ज़ल के बारे में यह लेख लिखा। वैसे पहले भी हमारे रमण कौल ग़ज़ल के बारे में लिख चुके हैं। इस लेख में भी कुछ नया नहीं है लेकिन फिर से इसे टाइप किया क्योंकि इस लेख में कुछ विस्तार से जानकारी दी गयी है। जानकारी के लिये बता दें कि यह लेख डा.अर्शद जमाल ने ‘आइना-ए-ग़ज़ल’ के लिये लिखा था। […]

  29. timir Avatar
    timir

    रमन जी, मैं आपका क्षमाप्रार्थी हूँ . मुझे आपका नाम अंकित करना चाहिए था . मैं चिट्ठाकारी में नया नया प्रविष्ट हुआ हूँ . इसलिए इसके नियमों से अनजान था . आगे से इस बात का ध्यान रखूँगा .

  30. timir Avatar
    timir

    रमन जी, मैं आपका क्षमाप्रार्थी हूँ . मुझे आपका नाम अंकित करना चाहिए था . मैं चिट्ठाकारी में नया नया प्रविष्ट हुआ हूँ . इसलिए इसके नियमों से अनजान था . आगे से इस बात का ध्यान रखूँगा .

  31. vinay Avatar
    vinay

    रमन जी

    ग़ज़ल मे मीटर पे लिखा जाता है और मुझे
    मात्राएँ जोड़ना नही आता है …क्या आप उदाहरण
    के साथ ग़ज़ल के शेरो मे गिनती समझा सकते हैं
    सभी मात्राएँ कितनी गिनी जाती हैं इत्यादि …..

    बहुत कृपा होगी
    धन्यवाद

  32. vinay Avatar
    vinay

    रमन जी

    ग़ज़ल मे मीटर पे लिखा जाता है और मुझे
    मात्राएँ जोड़ना नही आता है …क्या आप उदाहरण
    के साथ ग़ज़ल के शेरो मे गिनती समझा सकते हैं
    सभी मात्राएँ कितनी गिनी जाती हैं इत्यादि …..

    बहुत कृपा होगी
    धन्यवाद

  33. vinay Avatar
    vinay

    जैसा की हर लाइन मे बराबर मात्राएँ आणि चाहिए
    मैं बाहर का मतलब यही समझता था …रौशनी डालें

    धन्यवाद

  34. vinay Avatar
    vinay

    जैसा की हर लाइन मे बराबर मात्राएँ आणि चाहिए
    मैं बाहर का मतलब यही समझता था …रौशनी डालें

    धन्यवाद

  35. एम- मुबीन Avatar

    غزل کی اتنی جامع تعریف دینے پر مبارک باد رمن جی ایم مبین

  36. एम- मुबीन Avatar

    غزل کی اتنی جامع تعریف دینے پر مبارک باد رمن جی ایم مبین

  37. […] के जवाब में मैं ने उस की टिप्पणी में यह ग़ज़ल की पूँछ जोड़ी थी, जिसे राजीव जी के प्रोत्साहन […]

  38. […] के जवाब में मैं ने उस की टिप्पणी में यह ग़ज़ल की पूँछ जोड़ी थी, जिसे राजीव जी के प्रोत्साहन […]

  39. madhusudan choubey Avatar

    good information……thanks… i was in search of these facts…thanks again sir..

  40. madhusudan choubey Avatar

    good information……thanks… i was in search of these facts…thanks again sir..

  41. Anil Nailwal Avatar

    गज़ल की ख़ासियत को इतने सहज अल्फाज़ोँ मेँ बताने के लिये हम आपके शुक्रगुज़ार हैँ।

  42. Anil Nailwal Avatar

    गज़ल की ख़ासियत को इतने सहज अल्फाज़ोँ मेँ बताने के लिये हम आपके शुक्रगुज़ार हैँ।

  43. IMRAN ABDULLAH KHAN Avatar
    IMRAN ABDULLAH KHAN

    mai aap tamam dosto ko IMRAN KHAN KA ADAB QOBUL HO
    MUJHE GAZL SE BAHOT HI LAGAVE HAI MAI BAHOT HI BARIQ SE MAI INKO SUNTA HU AUR SAMJHTA HU MAI UNSE DOSTI KRNA CHAUNGA SO GHZAL ME ZYADA LAGAVE RAKHTE HAI

  44. IMRAN ABDULLAH KHAN Avatar
    IMRAN ABDULLAH KHAN

    mai aap tamam dosto ko IMRAN KHAN KA ADAB QOBUL HO
    MUJHE GAZL SE BAHOT HI LAGAVE HAI MAI BAHOT HI BARIQ SE MAI INKO SUNTA HU AUR SAMJHTA HU MAI UNSE DOSTI KRNA CHAUNGA SO GHZAL ME ZYADA LAGAVE RAKHTE HAI

  45. praveen bhanot Avatar
    praveen bhanot

    आप दबीर लोगों के आधार पर जब ग़ज़ल की जांच करते हैं तो अधिकांश ग़ज़लें मीटर में नहीं है ।मुझे बहर के विषय में जानकारी चाहिए ।

  46. praveen bhanot Avatar
    praveen bhanot

    आप दबीर लोगों के आधार पर जब ग़ज़ल की जांच करते हैं तो अधिकांश ग़ज़लें मीटर में नहीं है ।मुझे बहर के विषय में जानकारी चाहिए ।

  47. sanjay Rajbhar samit Avatar
    sanjay Rajbhar samit

    गजल “गजालो” शब्द से बना है । सुना हूँ ।क्या सही है ।जिसका मतलब हिरण का बच्चा ।

  48. sanjay Rajbhar samit Avatar
    sanjay Rajbhar samit

    गजल “गजालो” शब्द से बना है । सुना हूँ ।क्या सही है ।जिसका मतलब हिरण का बच्चा ।

  49. Manindra Chandra Sarkar Avatar

    बदल रहा हैं मौसम आज देश-विदेश का
    विनाश का संकेत तो नहीं ये परमेश का

    हो रहा हैं परिवर्तन रोज़ आबोहवाओं में
    बढते जन निवास से सारा भुवनेश का

    ओजोन परत में हो जाने से असंख्य छेद
    असंतुलित हैं तपन आज उस तपनेश का

    नदियों की प्रवाह में बहाने से मल-जल
    हो रहा हैं दूषित जल सारा जलेश का

    बढ़ते तापमान से हाल-बेहाल हैं देश का
    और कई ठंडे प्रदेशों के उप-निवेश का

    अवर्षा की मार कहीं अतिवृष्टि की धार
    दोष नहीं हैं ये केवल देव वरुनेश का

    रोकना आसान नही होगा अब तो शायद
    गलना वर्फों का कई ध्रुवीय प्रदेश का

    गायब हैं कई प्रजातियाँ पशु-पक्षियों की
    घटते वन-जंगलों से आज भू-प्रदेश का

    निकलती वाहनों से ये जहरीली धुआं
    हालात बिगाड़ रही है सारा जगनेश का

    रहते वक़्त गर न हम आज चेते दोस्तों
    पता नहीं कल क्या हो इस निर्विशेष का

    हरेक को सोचना होगा इन विषयों पर
    काम नही हैं ये केवल व्यक्ति विशेष का

    आओ मिलकर सोचे बचाया जाए कैसे
    बदलते मौसम को आज देश विदेश का

    आपके हिसाब से अगर ये गज़ल पर्याय में आती है तो कृपया मुझे इसकी बहर लिखने में मदत कीजिये मैंने बहुत कोशिश किया बहर समझने की मगर समझ नही पा रहा हूँ बस इसका बहर लिख देंगे तो बहुत कृपा होगी और शायद मुझे कुछ समझ में भी आ जाए

  50. Manindra Chandra Sarkar Avatar

    बदल रहा हैं मौसम आज देश-विदेश का
    विनाश का संकेत तो नहीं ये परमेश का

    हो रहा हैं परिवर्तन रोज़ आबोहवाओं में
    बढते जन निवास से सारा भुवनेश का

    ओजोन परत में हो जाने से असंख्य छेद
    असंतुलित हैं तपन आज उस तपनेश का

    नदियों की प्रवाह में बहाने से मल-जल
    हो रहा हैं दूषित जल सारा जलेश का

    बढ़ते तापमान से हाल-बेहाल हैं देश का
    और कई ठंडे प्रदेशों के उप-निवेश का

    अवर्षा की मार कहीं अतिवृष्टि की धार
    दोष नहीं हैं ये केवल देव वरुनेश का

    रोकना आसान नही होगा अब तो शायद
    गलना वर्फों का कई ध्रुवीय प्रदेश का

    गायब हैं कई प्रजातियाँ पशु-पक्षियों की
    घटते वन-जंगलों से आज भू-प्रदेश का

    निकलती वाहनों से ये जहरीली धुआं
    हालात बिगाड़ रही है सारा जगनेश का

    रहते वक़्त गर न हम आज चेते दोस्तों
    पता नहीं कल क्या हो इस निर्विशेष का

    हरेक को सोचना होगा इन विषयों पर
    काम नही हैं ये केवल व्यक्ति विशेष का

    आओ मिलकर सोचे बचाया जाए कैसे
    बदलते मौसम को आज देश विदेश का

    आपके हिसाब से अगर ये गज़ल पर्याय में आती है तो कृपया मुझे इसकी बहर लिखने में मदत कीजिये मैंने बहुत कोशिश किया बहर समझने की मगर समझ नही पा रहा हूँ बस इसका बहर लिख देंगे तो बहुत कृपा होगी और शायद मुझे कुछ समझ में भी आ जाए

  51. gaurav singh Avatar
    gaurav singh

    sir kya matla ke baigair gazal ho sakti hai,aur ha git aur nazm alag chij hai ya ek hi hai,kya nazm ko bhi sher ke format me likhana hota hai ya gito ki tarah hi paragraph me………..

  52. gaurav singh Avatar
    gaurav singh

    sir kya matla ke baigair gazal ho sakti hai,aur ha git aur nazm alag chij hai ya ek hi hai,kya nazm ko bhi sher ke format me likhana hota hai ya gito ki tarah hi paragraph me………..

  53. प्रशांत Avatar
    प्रशांत

    Raman ji..Bahut bahut dhnyawad..aisi umda jankari ke liye.

  54. प्रशांत Avatar
    प्रशांत

    Raman ji..Bahut bahut dhnyawad..aisi umda jankari ke liye.

  55. Imran akmal Avatar
    Imran akmal

    حسن مطلع کسے کہتے ہیں

  56. Imran akmal Avatar
    Imran akmal

    حسن مطلع کسے کہتے ہیں

  57. Shailesh Yadav Avatar
    Shailesh Yadav

    बेहतरीन,बहुत ही शानदार इस जानकारी के लिए धन्यवाद…,

  58. Shailesh Yadav Avatar
    Shailesh Yadav

    बेहतरीन,बहुत ही शानदार इस जानकारी के लिए धन्यवाद…,

  59. दुर्गानाथ Avatar
    दुर्गानाथ

    सादा शब्दों में उपयोगी जानकारी के लिए हार्दिक धन्यवाद

  60. दुर्गानाथ Avatar
    दुर्गानाथ

    सादा शब्दों में उपयोगी जानकारी के लिए हार्दिक धन्यवाद

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