आज हम भी “ब्लैक” देख कर आए, और सोचा पहले आशीष जी को धन्यवाद दें — फिल्म को सुझाने के लिए, और इस सुझाव के लिए कि फिल्म को सिनेमा हॉल में ही देखें। हमारा भी यही सुझाव है कि फिल्म को बिलकुल मिस न किया जाए। नाम को देख कर तो लग रहा था कि एक और मुंबई के अंडरवर्ल्ड से संबन्धित फिल्म है, जिस में काला बाज़ारी वग़ैरा का ज़िक्र होगा, पर फिल्म का विषय इस से कोसों, मीलों दूर है। यह फिल्म भारत में इस साल के फिल्म पुरस्कारों पर तो क्लीन स्वीप मारेगी ही, बाहर भी सराहे जाने की उम्मीद की जा सकती है। अमिताभ बच्चन का अभिनय शायद ही किसी फिल्म में इस से बेहतर हुआ हो, और यही बात रानी मुखर्जी के लिए भी कही जा सकती है। हमारा मन तो उस छोटी सी लड़की के अभिनय ने ही मोह लिया, जिस ने रानी मुखर्जी के बचपन की भूमिका निभाई है। फिल्म का चित्रांकण अत्यधिक सराहनीय है। वास्तविक जीवन को दर्शाती इस फिल्म में कुछ दृश्य ज़रूरत से ज़्यादा नाटकीय लगते हैं, पर कुल मिला कर बहुत ही कलात्मक फिल्म है।
अंग्रेज़ी राज के ज़माने का भारत है और स्थान है शिमला, पर फिल्म में दिखाई इमारतों, शिक्षा संस्थानों को देख कर लगता नहीं कि फिल्म भारत में फिल्माई गई है। आधे नहीं तो एक चौथाई संवाद अंग्रेज़ी में हैं। यहाँ के सिनेमा में सभी हिन्दी संवाद अंग्रेज़ी में सबटाइट्ल के साथ थे। पर क्या भारत में रिलीज़ होने वाले प्रिंट में अंग्रेज़ी संवादों के सबटाइट्ल हिन्दी में हैं? मुझे तो नहीं लगता ऐसा किया गया होगा। क्या यह माना जाता है कि भारत का हर सिने-दर्शक इतनी अंग्रेज़ी समझता ही है? इसे भारतीय सिने दर्शक की तारीफ समझा जाए या उसकी ज़रूरतों की अवहेलना?
अंग्रेज़ी राज का भारत ही है “किसना” में भी। इसी वीकेंड पर घर में “किसना” की डीवीडी देखने की कोशिश की गई पर एक बार फिर आशीष जी की सलाह सच साबित हुई। एक बैठक में आधा घँटा देखी, दूसरी बार एक और घँटा, उस के बाद नहीं झेली गई। उसे देखने का रिस्क न ही लिया जाए तो बेहतर है। फिर मत कहना बताया नहीं।
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