दीपावली पर सभी को शुभकामनाएँ। वे जो देस में हैं, घरों में उजाले कर रहे हैं, पटाखे चला रहे हैं, उन को भी; और वे जो मिट्टी से दूर हैं, दिलों में उजाले कर रहे हैं, पटाखों की याद कर रहे हैं, उन को भी।
अक्तूबर का पूरा महीना बिना लिखे बीत गया। कारण कई रहे – दफ़्तर में दफ़्तर के काम का बोझ, घर में घर के काम का बोझ। साथ में पार्ट-टाइम पढ़ाई चल रही है, इंजिनीयरिंग में स्नातकोत्तर शिक्षा, और उसे जल्दी समाप्त करने की कोशिश में इस बार मैं ने अपने सामान्य सेमेस्टर के मुकाबले दुगना पाठ्यक्रम ले रखा है। उस के असाइनमेंट ही पूरे होते नहीं बनते। कोशिश है कि इस सब के बावजूद कुछ न कुछ लिखते रहने की भी कोशिश करता रहूँ, मुख्यतः अपने लिए – और यदि कोई पढ़ने वाला मिल जाए तो उन के लिए। पर सही समय-प्रबन्धन की सारी कोशिशें बेकार जा रही हैं। जीतू को धन्यवाद जिस ने याद तो किया, वरना
ग़ालिबे-खस्ता के बग़ैर कौन से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्या, कीजिए हाए हाए क्यों।
दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी माँ से प्रार्थना है कि हमें भी चार-चार हाथ दे दें ताकि ज़्यादा कुछ कर सकें। धन दें ताकि दफ़्तर के काम की, नौकरी की फिक्र न करनी पड़े। ..यानी “थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे”।
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