परिणीता को रिलीज़ हुए कुछ महीने हो गए हैं, पर मुझे अभी देखने का मौका मिला। देख कर इतनी अच्छी लगी कि यहाँ लिखने का मन हुआ। न तो मैंने शरतचन्द्र का मूल उपन्यास पढ़ा है, और न ही मीनाकुमारी वाली पुरानी “परिणीता” देखी है (देखी भी होगी तो याद नहीं)। इस कारण उत्सुकता के साथ और बिना किसी पूर्वाग्रह के मैंने यह फिल्म देखी।
छोटी बच्ची लोलिता के माता पिता एक कार दुर्घटना में मर गए होते हैं, और वह अपने मामा के घर रहने जाती है। वहाँ उसकी दोस्ती पड़ौस के बच्चे शेखर के साथ हो जाती है। बड़े हो कर यह बच्चे विद्या बालन और सैफ अली खान बन जाते हैं। दोनों का प्यार कैसे अनजाने में पनपता है, इसे बड़े ही मर्मस्पर्शी ढ़ंग से दिखाया गया है। फिल्म के आरंभ में शेखर का विवाह गायत्री तांत्या (दिया मिर्ज़ा) के साथ हो रहा होता है, और फिर सारी फिल्म फ्लैश बैक में चलती है। लोलिता की ज़िन्दगी में गिरीश (संजय दत्त) आता है जो कहानी को नया मोड़ देता है।
विद्या बालन की यह पहली फिल्म है और उसने बहुत ही अधिक प्रभावित किया। घर में हम लोग बात करने लगे कि चेहरा इतना पहचाना क्यों लग रहा है। इंटरनेट पर खोज करने पर पता लगा कि उसने कुछ विज्ञापन किए हैं – सर्फ-ऍक्सेल, वग़ैरा वग़ैरा। कुछ तसल्ली हुई, पर चेहरा उस से ज़्यादा पहचाना लग रहा था। और खोज की तो पता चला कि “हम पाँच” सीरियल जो हम नियमित रूप से देखते थे, उस में राधिका (बहरी वाली बहन) का रोल विद्या ने ही किया था।
सैफ अली खान का अभिनय हर फिल्म के साथ निखर रहा है। संजय दत्त सामान्य हैं। दिया मिर्ज़ा का थोड़ा सा रोल है। रेखा का भी एक गाना है। संगीत ठीक ठाक है। कुल मिला कर विद्या बालन और सैफ अली खान का अभिनय और विधू विनोद चोपड़ा प्रदीप सरकार (corrected 10-Oct-2016) का निर्देशन फिल्म को देखने लायक बनाता है। ज़रूर देखें।
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