कल शनिवार को मेरे मित्र के पिता जी का सत्तरवाँ जन्मदिन था। इस अवसर पर उन के परिवार वालों ने उन के लिए एक “सरप्राइज़” जन्मदिन समारोह का प्रबन्ध किया था। सरप्राइज़ जन्मदिन पार्टियाँ तो आजकल इतनी आम हो गई हैं कि अब उन को सरप्राइज़ रखना मुश्किल हो जाता है। यानी, यदि हर साल आप का जन्मदिन मनता आया है, और इस साल आप के जन्मदिन की कोई बात ही नहीं कर रहा, तो समझिए आप के लिए सरप्राइज़ पार्टी का इन्तज़ाम हो रहा है। अब आप इस बात की प्रैक्टिस कीजिए कि सरप्राइज़ न होने पर भी आप कैसे हैरान होने की ऍक्टिंग करेंगे। आप को आप के जन्मदिन वाले दिन कहीं पहुँचने को कहा जा रहा है, जिस का आप के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध नहीं है, आप कमरे में घुसते हैं और लोग अचानक चिल्ला पड़ते हैं “सरप्राइज़”। यदि यह सब नहीं होता है, तब आप को वास्तव में हैरान होने की ज़रूरत है।
खैर यह जन्मदिन पार्टी के रूप में न हो कर वाशिंगटन डीसी के पास एक गुरुद्वारे में कीर्तन और लंगर के रूप मैं था, पर था सरप्राइज़। मैं अपनी आदत के अनुसार देर से पहुँचा, इसलिए वह हिस्सा छूट गया जब इन्द्रजीत अंकल को सरप्राइज़ दिया जा रहा था। मैं सीधे कीर्तन में पहुँचा। इसके बारे में लिख इसलिए रहा हूँ क्योंकि मुझे उन का कंप्यूटर का प्रयोग अच्छा लगा। स्टेज पर ग्रन्थ साहब के पास ज्ञानीजन गुरबानी गा रहे थे, और एक विशालकाय स्क्रीन पर गुरबानी के शब्द गुरुमुखी में लिखे आ रहे थे, अँग्रेज़ी में अर्थ के साथ। एक बार में एक श्लोक होने के कारण पढने, समझने और गाई जा रही गुरबानी के साथ तालमेल में बहुत आसानी हो रही थी। नियन्त्रण एक सरदार जी के लैपटॉप में था, जहाँ से वे एक प्रोजेक्टर के द्वारा बड़े स्क्रीन पर उसे प्रदर्शित कर रहे थे। शायद बेतार ब्रॉडबैंड के ज़रिए वे इंटरनेट से जुड़े थे। जिस साइट का प्रयोग वे कर रहे थे वह थी “सिखी टू द मैक्स“। जैसे ही भजन बदलता, वे फटाफट उस साइट पर उसे सर्च करते और उसके दोहे/श्लोक पर्दे पर आने लगते। काफी असरदार और सुप्रबन्धित था यह सब।
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