Category: हिंदी
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मुशर्रफ के ख़िलाफ मुहिम
रोजनामचा पर मुशर्रफ की भारत की क्रिकेट यात्रा के बारे में पढ़ा, और साथ ही सूचना दी उन्होंने ब्लागजगत की उन के खिलाफ मुहिम के बारे में। अँग्रेज़ी ब्लॉग जगत के नामी गिरामी चिट्ठाकार इस मुहिम में शामिल हो गए हैं, हिन्दी वालों ने भी खाता खोल लिया है, तो मैं ने सोचा बैनर को…
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कंप्यूटर पर गुरबानी
कल शनिवार को मेरे मित्र के पिता जी का सत्तरवाँ जन्मदिन था। इस अवसर पर उन के परिवार वालों ने उन के लिए एक “सरप्राइज़” जन्मदिन समारोह का प्रबन्ध किया था। सरप्राइज़ जन्मदिन पार्टियाँ तो आजकल इतनी आम हो गई हैं कि अब उन को सरप्राइज़ रखना मुश्किल हो जाता है। यानी, यदि हर साल…
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अधमरे हो कर रहने से ज़िन्दगी अच्छी या मौत?
यूँ तो अमरीका मे हर छोटी से छोटी बात समाचार बन जाती है। ऐसे मामले जिन को कुछ देशों में कोई पूछे भी नहीं, यहाँ महीनों तक सुर्खियों में रहते हैं, तब भी जब उस में शामिल सब लोग आम होते हैं। हाल में समाप्त हुए स्कॉट पीटरसन मामले को राष्ट्रीय मीडिया में जो प्रभुता…
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हिन्दी और वेल्श
बीबीसी की सोनिया माथुर यू॰के॰ के वेल्ज़ सूबे में काम करने गईं तो उन को अपने हिन्दुस्तानी तलफ़्फ़ुज़ और वेल्ज़ की वेल्श अँग्रेज़ी में काफी समानता लगी। बीबीसी की साइट पर छपे इस लेख में लिखा है कि जब वह फोन उठा कर “हलो” भर कहती थीं तो अगला उन से पूछता था, “आप वेल्ज़…
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हमारा क्रिकेट प्रेम
बाल्टिमोर सन के कागज़ी संस्करण में भारतीय विद्यार्थियों का एक चित्र देखा तो उत्सुकता हुई। रिपोर्ट थी भारतीयों में क्रिकेट प्रेम के बारे में, कि किस प्रकार यहाँ के भारतीय विद्यार्थी समुदाय में उत्साह है इस खेल के बारे में जिस के बारे में अन्यथा कोई कुछ नहीं जानता यहाँ। तब ध्यान आया कि भारत…
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सातवीं अनुगूँज – बचपन के मेरे मीत
बचपन के मीत — बड़ा ही भावुक और दिल के करीब का विषय है यह। जैसे ही विषय की घोषणा हुई, मैंने सोचा कि अपनी प्रविष्टि तो निश्चित है। पर अलाली का आलम यह है कि कोई बात तब तक नहीं होती जब तक उस की अन्तिम तिथि न आ जाए। अंकल सैम से टैक्स…
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अगर तुम आ जाते एक बार
अगर तुम आ जाते एक बार काँटे फिर न पीड़ा देते आँसू भी मोती बन जाते तेरी बाहें जो बन जाती मेरे गले का हार अगर तुम आ जाते एक बार जीवन का सच अतिसय सुन्दर पा जाते हम दोनों मिलकर उजड़े दिलों में छा जाती मदमाती नई बहार अगर तुम आ जाते एक बार…
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अनुगूंज ६ : मेरा चमत्कारी अनुभव
“मेरा चमत्कारी अनुभव” – मैंने अनुगूंज का यह विषय चुन कर स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। स्वयं का कोई ढ़ंग का अनुभव है नहीं, लिखूँ तो क्या लिखूँ? यही होता है जब नौसिखियों को कोई ज़िम्मेवारी का काम दिया जाता है। समस्या यह है कि जब तक मैं स्वयं न लिखूँ तब तक…
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कृष्ण और कृष्ण
आज हम भी “ब्लैक” देख कर आए, और सोचा पहले आशीष जी को धन्यवाद दें — फिल्म को सुझाने के लिए, और इस सुझाव के लिए कि फिल्म को सिनेमा हॉल में ही देखें। हमारा भी यही सुझाव है कि फिल्म को बिलकुल मिस न किया जाए। नाम को देख कर तो लग रहा था…