अनुगूँज 17: क्या भारतीय मुद्रा बदल जानी चाहिए?

Akshargram Anugunjभारतीय मुद्रा बदलने का रजनीश का सुझाव विचारणीय तो है, पर मेरे विचार में इस का उत्तर है — नहीं। अर्थशास्त्र पर अपनी पकड़ वैसे बहुत कमज़ोर है, इसलिए डिस्क्लेमर पहले सुना दूँ — इस विषय पर व्यक्‍त किए गए मेरे विचार पूर्ण रूप से व्यक्‍तिगत और अव्यवसायिक हैं, और पढ़ने वाला किसी भी नतीजे पर पहुँचने के लिए अपनी सोच खुद सोचे।

मुद्रा बदलने का विचार शायद रजनीश को “रोटी कपड़ा और मकान” के “हाय महंगाई…” गाने की यह लाइन सुन कर आया होगा

पहले मुट्ठी में पैसे दे कर थैला भर शक्कर आती थी,
अब थैले में पैसे जाते हैं, मुट्ठी में शक्कर आती है।

एक और डायलाग याद आता है एक पाकिस्तानी हास्य ड्रामा से। भारत में केबल-टीवी के सैलाब से पहले एक छोटा सा दौर आया था जब वीडियो लाइब्रेरियों का चलन हो गया था — अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में। उन दिनों पाकिस्तान की स्टेज कॉमेडियों के विडियो बड़े मशहूर हो गए थे। “बकरा किस्तों पे” जैसे इन नाटकों में हास्य तो बड़ा भौंडा होता था, पर हंसी खूब आती थी। एक ड्रामा में उमर शरीफ़ कुछ ऐसे कहता है, “अमरीकी डालर ४० (पाकिस्तानी) रुपये का है, इस का मतलब एक अमरीकी अपने मुल्क से ४० गुना ज़्यादा मुहब्बत करता है।”

खैर मज़ाक को परे रख कर, मुझे नही लगता कि मुद्रा बदलने की बात वाजिब है। पहली बात तो यह कि केवल अमरीकी डालर या यूरो से तुलना करना सही नहीं है। आज की तारीख में एक अमरीकी डॉलर ११४ जापानी येन के बराबर है, यानी येन भारतीय रुपए से भी सस्ता है। इस का मतलब यह तो नहीं कि येन एक कमज़ोर मुद्रा है और इसे बदल देना चाहिए। यही हाल यूरोप की समान मुद्रा बनने से पहले इटली के लीरा और अन्य कुछ यूरोपीय मुद्राओं का था।

जो मुद्रास्फीति होती है, उस के हिसाब से मुद्रा स्वयं को निर्धारित करती ही है। हमारे बचपन में १,२ और ५ पैसे के सिक्के नज़र आते थे, पर अब चवन्नी अठन्नी के इलावा सारे सिक्के ग़ायब हैं। इसी तरह छोटी कीमत की मुद्रा ग़ायब होती जाती है, और शायद जल्द ही रुपये से छोटी मुद्रा मिलेगी ही नहीं। ऐसे में रुपये को १०० से भाग कर के पैसे के बराबर कर देना, और १०० रुपये को १ रुपया बना देना नाम के लिए तो रुपये को कीमती बनाएगा, पर लोगों की क्रय शक्‍ति (या अशक्‍ति) पर कोई असर नहीं होगा। कीमतें कम होंगी तो तनख्वाहें भी कम हो जाएँगी, और जो महा-कन्फ्यूजन होगा वह अलग। अभी कुछ तो दबाव है कि आज यदि डॉलर ४४ रुपये का है तो कल ४२ का हो जाए, फिर तो वह भी खत्म हो जाएगा। और फिर महंगाई और मुद्रास्फीति तो बढ़ती रहेगी, कितनी बार पुनर्मूल्यांकन करते रहेंगे।

हाँ, मुद्रा की कीमत कम होने से कुछ तो दिक्कत होती ही है। कुछ वर्ष पहले मैं हंगरी गया था, तो बुदापेश्त में एयरपोर्ट से होटल का भाड़ा ५००० फोरिंट के करीब दिया था, जो उस समय २०-२५ डॉलर के करीब था। हफ़्ता भर वहाँ था, तो जेब नोटों से भरी रखनी पड़ती थी। पर यहाँ अमरीका में वही हाल रेज़गारी के साथ होता है। यदि कुछ भी नकदी से खरीदें तो वापसी में बहुत सी रेज़गारी मिलती है, क्योंकि एक-एक सेंट का हिसाब होता है। जेब उस से भारी हो जाती है। गैस (पैट्रोल) का दाम तो यहाँ सेंट के दहाई हिस्से में गिना जाता है, यानी आज की कीमत है २ डॉलर १९.९ सेंट प्रति गैलन। शुक्र है कि टोटल को नज़दीक के सेंट में राउंड ऑफ कर दिया जाता है।

भविष्य की मुद्रा तो शायद प्लास्टिक और इंटरनेट ही रहेगी। यानी जहाँ तक हो सके क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड से काम चलाओ, इंटरनेट से सारे भुगतान करो। नोटों और रेज़गारी का झंझट ही नहीं। यहाँ तो हमारे साथ वही होता है। नकदी की ज़रूरत बहुत ही कम पड़ती है। पर भारत में ऐसी स्थिति कब आएगी? कुछ लोगों के लिए तो वहाँ यह स्थिति आ चुकी है, पर सब तक कब पहुँचेगी? शायद यह फिर कभी अनुगूँज का विषय बनेगा।


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Comments

  1. आशीष Avatar

    आपको यहां शिकार बनाया गया

    आशीष

  2. anil kinariwala Avatar
    anil kinariwala

    क्रांतिकारी विचार: विस्तार से-
    महंगाई के मूल मे किंमत होती है,जो हम देश मे समर्थित मुद्रा के रूप में अदा करते हैं। मतलब महंगाई को निर्देशित करनेवाली ईकाई मुद्रा है,जिसे अगर चाहे तो राष्ट्र प्रमुख समयानुसार पुनः परिभाषित करतेहुए अर्थ व्यवस्था को नई दिशा देते हैं, जैसा पूर्व मे प्रधानमन्त्री नेहरू जी ने १९५७ में दशमलव पद्धति लागू की थी।
    अब समय आ गया है,देश मे महंगाई १९४७ के मुकाबले १:६० अनुपात मे हो गई हैं। जिसका सीधा असर विकास की गति पर हो रहा हैं।
    विश्व के दुसरे देशो के मुकाबले हम ₹ मे कम खाना खरीद सकते है।हमारा ₹ बहुत कमजोर है। ईसलिए मुद्रा परिवर्तन करना समय कि आवश्यकता है। हमें RAM मुद्रा (real ancient money) अपनाना चाहिए।
    RAM मुद्रा :-
    रूपया-आना-पैसा
    १००पैसे #१आना
    १००आने#१₹
    उपरोक्त समीकरण अपनाया जाय तो हमारे देश मे सभी वस्तुओं के दाम एकदम कम लगने लगेंगे। उदा.केवल १₹ मे १.३ लिटर पेट्रोल मिलेंगा।
    अथवा१डॉलर की कीमत सिर्फ ०.६₹॥ हमारे कलदार ₹ की खरीद शक्ति बहुत बङ जायेगी।
    कहते है न कि सस्ताई के जमाने मे बरकत होती है। सच मे अच्छे दिन आ जायेंगे।
    महंगाई एवं विकास:-
    इसे हम एक रोजमर्रा के उदाहरण से समझते हैं।- हमारे यहां घरेलु कामकाज के लिये नौकर का पगार ₹७०० है। और ड्राइवर का पगार ₹७००० हो तो पगार बडौती के समय हम नौकर का पगार ₹१००० कर देवेंगे परंतु ड्राइवर का पगार अधिकतम ₹८००० ही देंगें।
    क्योंकि महंगाई अपना रंग दिखायेगी।
    मुद्रा का चलन – उसकी बाज़ार किंमत पर निर्भर करता है। जैसे अति उर्जावान अथवा उर्जाहीन जल का प्रवाह समाप्त हो जाता है। वैसे ही अति मुल्यहीन अथवा मुल्यवान मुद्रा चलन मे नही रहतीं। आज हमारे पैसे/गिन्नी की यही स्थिति है। पैसे बाज़ार मे चलन से बाहर है। क्यों कि पैसे की किंमत नही बची चहै। बाजार में धीरे धीरे १,२,५,₹ का चलन भी समाप्त हो रहा है। हमारी मुद्रा का लगातार अवमूल्यन हो रहा है। हमारे कलदार का तेज क्षुण हो रहा हैं।
    मोदी जी, ₹ को तेजोमय बनाने के लिये RAM मुद्रा अपनाईये।-
    मुद्रा पुनर्मूल्यांकित करें।-
    १००पैसे=१आना,१०० आने=१₹।
    मृत्यु माने ह्रास, जीवन माने विकास और भौतिक विकास मे हमारी पूंजी लगती है जिसका असर कींमत पर पड़ता है हमें वस्तुओं की ज्यादा कीमत चुकाना पड़ती हैं जिससे हमारी मुद्रा क्रमशः कमज़ोर होने लगती हैं इसलिए देश प्रमुख को समयानुसार मुद्रा मे सुधार करना चाहिए अगर हम टालते है तो महंगाई अनियंत्रित हो कर हमारी मुद्रा का ह्रास अनिवार्य हो जाता है,जो अधिकतम १:१०० अनुपात तक पहुंच जाता हैं। हम भाग्यशाली है की पूर्व में हमारे यहाँ ३स्तरीय मुद्रा चलन मे थी।
    आज उसे पुन: मुल्यांकन भर की आवश्यकता हैं जिससे आश्चर्य जनक रूप से हम महंगाई को समाप्त कर सकते हैं।

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