साइबर स्क्वैटिंग को हिन्दी में क्या कहेंगे? अनु-झोपड़पट्टी? कुछ समय पहले तक साइबर स्क्वैटिंग बहुत ही आम बीमारी थी। लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों के डोमेन-नेम रजिस्टर करा लेते थे और बाद में उनसे अच्छी ख़ासी रक़म वसूलते थे। अब कई कानून बन गए हैं जिनसे साइबर स्क्वैटिंग करने वालों के लिए मुश्किल हो गई है पर तब भी यह लोग कुछ न कुछ रास्ते निकाल ही लेते हैं। एक तरीक़ा है टाइपो-स्क्वैटिंग का, यानी आप ने URL ग़लत टाइप किया नहीं कि आप पहुँच गए किसी अश्लील साइट पर। कंपनियों के लिए परेशानी रहती है कि किस तरह अपने नाम के हर रूप के URL को रजिस्टर करा लें। क्या आप जानते हैं कि whitehouse.com एक अश्लील साइट है और whitehouse.org एक व्यंग्यात्मक साइट जिसका वाइट-हाउस से कोई लेना देना नहीं है? बेचारे वाइट-हाउस वालों को whitehouse.gov से गुज़ारा करना पड़ा।
इस बारे में एक दिलचस्प क़िस्सा है भारतीय मूल के कैनेडियन ग्राफिक आर्टिस्ट आनन्द रामनाथ मणि का जिन्होंने अपने नाम के आधार पर armani.com रजिस्टर करा लिया था। विश्व प्रसिद्ध स्विस फ़ैशन कंपनी अरमानी को जब पता चला तो उनकी सुलग गई। काफी समय तक कोर्ट कचहरी करने के बाद संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी World Intellectual Property Organization (WIPO) ने फैसला दे कर मणि जी को armani.com का सही हक़दार क़रार दिया। लेकिन अब लगता है कि ज्योर्जियो अरमानी कंपनी ने इस नाम को ख़रीद लिया है।
यह बात कैसे छिड़ी? जैसा मेरा ब्लाग पढ़ने वालों में से कुछ लोग जानते हैं, मेरा ब्लाग हुआ करता था idharudharki.blogspot.com पर। अपनी साइट पर वर्डप्रेस वाला ब्लाग ड़ालने के बाद मैंने blogspot से idharudharki हटा दिया था। कुछ दिन पहले मैंने ग़लती से पुराना URL टाइप किया तो यह पृष्ठ खुला। किसी महानुभाव ने मेरे डिलीट किए URL को ले कर, मेरे पहले पोस्ट के साथ एक डमी पोस्ट डाल दिया है और एक डमी ब्लाग बना लिया है। किस लाभ की उम्मीद में हैं यह साहब (या साहिबा) यह समझ में नहीं आया। बस यही कहूँगा कि यदि ब्लागस्पाट पर आप की पहचान बनी हुई है तो ब्लागस्पाट को छोड़ते वक़्त नाम को मत छोड़िए।
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