आमिर ख़ान कब बोलेंगे

आजकल के बॉलीवुड अभिनेताओं में से आमिर ख़ान मेरे सब से पसन्दीदा कलाकार हैं। पर जिस मुद्दे की मैं यहाँ बात कर रहा हूँ वह उन के कलाक्षेत्र से बाहर का है।

पिछले वर्ष के आरंभ में आमिर ख़ान नर्मदा परियोजना पर अपने वक्तव्यों के चलते विवादों में थे। उन की फ़िल्म फ़ना पर गुजरात में रोक लगाई जा रही थी। तब कुछ पत्रकारों के यह पूछे जाने पर कि वे नर्मदा के विस्थापितों की तो बात कर रहे हैं, पर कश्मीर के विस्थापितों की बात क्यों नहीं करते, उन्होंने कहा था

बिल्कुल, मैं (विस्थापित) कश्मीरी पंडितों को सपोर्ट करता हूँ। मैं जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाऊँगा। कश्मीरी पंडितों को केवल इस लिए निशाना बनाया जाना कि वे हिन्दू हैं, अन्यायपूर्ण है। मैं आतंकवादियों के द्वारा किए गए बम धमाकों के भी ख़िलाफ़ हूँ, क्योंकि उस में केवल बेगुनाह ही मरते हैं। (सौजन्य रेडिफ डॉट कॉम)

बॉलीवुड से संबन्धित इस साइट पर भी आमिर के इस वक्तव्य का स्वागत हुआ था –

आमिर अपनी फ़िल्म फ़ना पूरी करने के बाद अपने परिवार के साथ छुट्टी मना रहे हैं। वापस आ कर वे शरणार्थी शिविरों में जाएँगे, विस्थापित पंडितों से बात करेंगे, और फिर राज्य और केन्द्रीय सरकार से उन के पुनर्वसन के बारे में बात करेंगे। आमिर ख़ान का इरादा अनुपम खेर, महेश भट्ट और अशोक पंडित जैसी मशहूर हस्तियों के साथ कश्मीर घाटी जाने का है। अनुपम खेर और महेश भट्ट ने आमिर के इस कदम की काफी प्रशंसा की है।

पर लगता है आमिर यह सब कह कर भूल भाल गए। पब्लिक की याददाश्त भी कमज़ोर होती है, वह भी भूल गई। और फिर जब मामला एक छोटे से अल्पसंख्यक समूह का हो तो भूलना सब के लिए आसान है। पर कश्मीर हेराल्ड के संपादक और रेडिफ के सतंभकार ललित कौल नहीं भूले। वे अपनी साइट पर दिनों, घंटों, मिनटों, सेकंडों का हिसाब रख रहे हैं। जब मैं यह प्रविष्टि लिख रहा हूँ, तब तक 453 दिन, 20 घंटे, 20 मिनट और 34 सेकंड हो गए हैं, और आमिर अभी तक न बोले हैं, न कहीं गए हैं कश्मीरियों से मिलने।

स्वाधीनता की 60वीं वर्षगांठ पर लिखा ललित का रेडिफ पर लिखा यह लेख भी पढ़ें। और ढ़ाई वर्ष पहले उन के एक और लेख (The pawns without a vote) का मेरा अनुवाद भी पढ़ें।


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Comments

  1. अनूप शुक्ल Avatar

    आमिर खान जिस अदा में बोले थे उसी से लगता था कि मामला तात्कालिक ज्यादा है ठोस कम। वही हुआ। उनसे आशा क्या लगाना। इसी बहाने आपका लेख आया यह खुशी की बात है।

  2. देबाशीष Avatar

    मैं भी आमिर का बड़ा प्रशंसक हूं और मुझे लगता है कि वे पूरी समझबूझ से इस राजनीति से दूर रहना चाहते हैं। वे जानते हैं कि मुसलमान होने का नाते वे जो भी कहेंगे उसके मायने कुछ भी निकाले जा सकते हैं, यह बात साबित करने के लिये सबूतों की दरकार नहीं होगी कि इनकी निष्ठा तोलने का मौका कोई नहीं छोड़ता, ज्यादा दूर न जायें तो संजय दत्त और सलमान खान की सजा से ही अंदाज़ा लगायें, देशद्रोह और एक हिरण मारने की सज़ा एक, ये तो है हमारी तथाकथित न्यापालिका का तराज़ू। मुद्दे पर लौटूं तो आमिर जैसे कलाकारों के सामने राजेश खन्ना से लेकर शबाना तक के उदाहरण है जिन्होंने सक्रिय राजनीति में उतर कर कुछ हासिल न किया। आमिर अपनी बात रंग दे बसंती जैसी फिल्मों से सेल्यूलायेड पर ही दें तो उत्तम हो, बस मेरी अपेक्षा रहेगी कि परफेक्शनिज़्म पर थोड़ी रोक लगा कर साल में कम से कम तीन फिल्में करें, आजकल फिल्में बन भी जल्दी जाती हैं। और दूसरी ये कि वे मल्टीनेशनल स्टारकास्ट के साथ कोई वैश्विक फिल्म बनायें, आस्कर के लिये नहीं, कला के लिये।

  3. आलोक Avatar

    मुझे लगता नहीं कि आमीर खान को इसकी कुछ परवाह भी है। बल्कि फ़ना में जिस प्रकार का किरदार उन्होंने किया, और निर्देशक पर आमीर का काफ़ी प्रभाव रहता है, मुझे तो वह काफ़ी खुराफ़ाती लगते हैं, फ़िल्म में तो आतंकवादी के जीवन को चमाचम तरीके से दिखाने की कोशिश की गई।
    इन घटनाओं के बारे में भी लोग भूल जाएँगे, अगर आपकी तरह लोग याद न दिलाते रहे तो।

  4. आलोक Avatar

    देशद्रोह और एक हिरण मारने की सज़ा एक
    क्या आप यह कह रह हैं कि सलमान को मुसलमान होने की वजह से अधिक सज़ा मिली?

  5. देबाशीष Avatar

    क्या आप यह कह रह हैं कि सलमान को मुसलमान होने की वजह से अधिक सज़ा मिली?

    आपके सामने हैं दोनों फैसले। यार्डस्टिक कौन सा प्रयुक्त हुआ है आप बतायें? देशद्रोह की सज़ा सजा‍ ए मौत से कम नहीं होनी चाहिये चाहे वो काँग्रेसी एमपी का बेटा हो।

  6. देबाशीष Avatar

    खैर मेरा इशारा कुछ इस बात पर था कि हम हर बात पर भारत के मुसलमानों से निष्ठा के लिटमस टेस्ट को पास करने की अपेक्षा रखते हैं। कश्मीरी विस्थापितों की जिस समस्या को बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियाँ ही जब मतलब पड़ने पर ही याद करती हैं वहाँ आमिर जैसे व्यक्ति को अपना राजदूत बनाने पर निर्भरता क्यों कर होनी चाहिये? अब अगर वो अपने फिल्मी चरित्र में वापस चले गये तो वे एक सेकुलर भारतीय होने के तमगे से वंचित कर दिये जायें और अगर साथ दें तो “शायद” उनके खिलाफ फतवे भी जारी हो जायें। आमिर जैसा मुद्दों पर सोचने वाला इंसान तो बिचारा पिस ही जाये दो पाटों में। इससे तो शाहरुख खान जैसी ज़िंदगी भली है, चमक दमक से वास्ता रखो और दो साल में एक बार स्वदेस या चक दे जैसी कोई अर्थपूर्ण फिल्म कर अपना सामाजिक दायित्व की इतिश्री समझो।

  7. abhinav Avatar
    abhinav

    आमिर खान की अभी कौन सी फिल्म रिलीज होने वाली है जो बोलें?
    अभी कोई पिक्चर रिलीज होने का मौका तो आने दीजिये, फिर पढ़ लीजियेगा दनादन बयानबाजी।

  8. संजय बेंगाणी Avatar

    विस्थापितों की किसी को नहीं पड़ी, अमिर तो लाइमलाइट में आने के लिए नर्मदा योजना का सहारा लिया. वैसे भी हिन्दू और गुजरात सम्बन्धी किसी चीज पर हायतौबा मचा कर सुर्खियों में आना सरल है.
    तय मानिये अमीर कश्मीरी शर्णार्थियों पर कुछ नहीं बोलेंगे, हालाकी यह दौगला पन ही है.

  9. Anunad Singh Avatar

    यह सोचना कि शाहरूख या आमिर का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, बचकाना होगा।

    आलोक ने जो उपर ‘फ़ना’ की बात की है, मेरे भी दिमाग में नहीं पच पाती। फना का दशव्यापी विरोध होना चाहिये था। इसमें जिस तरह से आतंकवाद को महिमामण्डित किया गया है, वह धीमा जहर है। इसमें जेहादियों की भावना और चरित्र को बहुत पवित्र बताया गया है; ऐसा लगता है जैसे यह फिल्म दाउद या आइ एस आइ के ‘रिमोट’ निर्देशन में तैयार की गयी है।

    रही बात आमिर का काश्मिरी विस्थापितों के शिविर में जाने की बात, मुझे तो कोई आशा नहीं है।

  10. आलोक Avatar

    चाहे वो काँग्रेसी एमपी का बेटा हो।

    हाँ, यह बात तो है। सलमान और संजय दत्त की सज़ा में यह भी फ़र्क है, कि
    सलमान की सज़ा जोधपुर की अदालत ने सुनाई है, और संजय दत्त की बंबई की अदालत ने। उसके ऊपर भी न्यायाधीश ने जितनी सज़ा सुनाई उस पर खुदबखुद लगभग अफ़सोस ही व्यक्त कर दिया।

    याद करें मैक पटौदी को भी सज़ा होते होते बची थी, शिकार के चक्कर में।

    दोनो की सज़ा में फ़र्क का कारण केवल एक का हिंदू होना और दूसरे का मुसलमान होना, कतई नहीं है, यह आप ने खुद अपने जवाब में स्पष्ट कर दिया है।

  11. संजय बेंगाणी Avatar

    फिल्म बनाते समय निष्टा भी काम करती है. एक समय था जब फिल्मो में उद्योग-धंधा लगाने वालों को देशद्रोही की हद तक नवाजा जाता था, एम मात्र मजदूर ही भला इंसान हो सकता था, इस सोच का परिणाम देश ने बेरोजगारी और गरीबी के रूप में भूगता है.

    वैसे ही अपराधियों को महामंडित करने वाली फिल्मे भी आती रही. हाल ही में एक भट्ट साब की फिल्म आयी थी उसमें गेंगस्टर इतना भला होता है मानो ईशा का अवतार है, समझ में नहीं आता भला आदमी गेंग में क्या कर रहा था.
    इसी प्रकार आतंकवादीयों के महामंडित किया जाना शोक का विषय है.

  12. रमण कौल Avatar

    @देबाशीष

    मैं भी आमिर का बड़ा प्रशंसक हूं और मुझे लगता है कि वे पूरी समझबूझ से इस राजनीति से दूर रहना चाहते हैं।

    यदि नर्मदा के विस्थापितों की बात करना राजनीति नहीं हुई तो कश्मीर के विस्थापितों की बात राजनीति क्यों हुई? “पूरी समझबूझ” का सिलेक्टिव इस्तेमाल?

    ..आमिर जैसे व्यक्ति को अपना राजदूत बनाने पर निर्भरता क्यों कर होनी चाहिये?

    मुझे नहीं लगता कि कश्मीरी विस्थापित उन्हें अपना राजदूत बनाने पर निर्भर हैं। जैसा आप ने कहा, वे अपनी बात “रंग दे बसंती” जैसी फिल्मों से सेल्यूलायेड पर ही कहें तो उत्तम हो। पर नर्मदा की बात भी उन्होंने ही की, और कश्मीर की बात करने की बात भी उन्होंने ही की।

    खैर मेरा इशारा कुछ इस बात पर था कि हम हर बात पर भारत के मुसलमानों से निष्ठा के लिटमस टेस्ट को पास करने की अपेक्षा रखते हैं।

    मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ, न ही इस बात से कि संजय दत्त को “हिन्दू” होने के कारण सज़ा कम मिली, या सलमान को मुसलमान होने के कारण ज़्यादा।

  13. Debashish Avatar
    Debashish

    रमण मेरे कहने का तात्पर्य यही था कि सिनेकलाकारों को राजनीति से दूरी रखनी चाहिये क्योंकि बड़ा पर्दा खुद एक माध्यम है जिससे अपनी बात वो कह सकें। मुझे ये लगता है कि नर्मदा आंदोलन पर बयान के बाद जो विरोध हुआ उससे वो आगे राजनीतिक मुद्दों पर उतरने से बिदके और ये ठीक भी लगता है, ये उनके बस की बात भी नहीं है। सलमान संजय के मामले में मेरी तो यही धारणा है कि न्याय सही और संतुलित नहीं हुआ, कारण जो भी रहे हों, मेरी नज़र में जो कारण कगा मैंने कहा।

    कृपया मुझ पर विस्थापितों की पीड़ा न समझ पाने का शक न करें पर मेरा कहना यही है कि न्याय के लिये लड़ाई तो इन्हें खुद ही लड़नी होगी। आपने ये पोस्ट आमिर से एक मुसलमान होने का नाते सवाल पूछते लिखी ये मेरा अंदाज़ा था और मैं आमिर के एक बयान पर ध्यान दिलाना चाहुंगा जब उन्होंने ये कहा कि ८० के दशक में राइट विंग के मजबूती के बाद से वे एक मुसलमान है ये उन्हें याद रखना पड़ता है। और ये बयान शायद भारत के हर मुसलमान के लिये सच हो, शायद ये कश्मीरी हिंदुओं के लिये भी कश्मीर में सच है। और सच ये भी है कि हर अल्पसंख्यक के लिये जीवन अब भी आसान नहीं।

  14. Nishikant Tiwari Avatar

    सामने सब के स्वीकार करता हूँ
    हिन्दी से कितना प्यार करता हूँ
    कलम है मेरी टूटी फूटी
    थोड़ी सुखी थोड़ी रुखी
    हर हिन्दी लिखने वाले का
    प्रकट आभार करता हूँ
    आप लिखते रहिए
    मैं इन्तज़ार करता हूँ ।
    NishikantWorld

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