कहानी शुरू हुई कई महीने पहले जब हमारे अतुल भाई अपने चिट्ठों की प्रसिद्धि के लिए मिठाई खिला रहे थे। “लाइफ इन..” के चर्चे अभिव्यक्ति पर थे। इंडीब्लॉग पुरस्कार रास्ते में थे, मालूम ही था अपनी ही झोली में गिरने हैं। खैर मिठाई का डिब्बा दिखा कर लिखते हैं, “अब सवाल यह है कि आप सब लोग फिलडेल्फिया कब आयेंगे मिठाई खाने”| हम ने कमेंट मारा कि तैयार रखो डिब्बा। खैर उस के बाद फोन पर बातचीत कई बार हुई। कई बार मिलने का कार्यक्रम बना, बिगड़ा। अन्ततः पिछले शनिवार, हम जा धमके। सपरिवार। फिलडेल्फिया बाल्टिमोर से १२० मील है, यानी १९२ किलोमीटर, यानी इंटरस्टेट-९५ पर लगभग दो घंटे। घर का सही रास्ता तो गूगल भैया ने दिखा ही दिया था, यहाँ तक कि अतुल जी की गलियों की सेटेलाइट फोटो भी हम छाप कर ले गए थे, पर पहुँचने पर ज़रा सा भटक ही गए। खैर सैलफोन के ज़रिए हमें नैविगेट किया गया। वह रास्ते का आखिरी टर्न समझा रहे थे कि हमारी नज़र पड़ी सामने जीता जागता रोजनामचा खड़ा है।
दोनों परिवार आपस में मिले। बहुत अच्छा लगा। छोटी-बड़ी महिलाओं की तो फटाफट निभ गई। बाँके बिहारी के भी दर्शन हुए। जैसे सब लड़के होते हैं, वे भी अपनी धौंस में थे, बातों से ज़्यादा लातों से काम ले रहे थे। एकदम ऍक्शन हीरो वाले स्टंट।
भरपूर, स्वादिष्ट भोजन जीमने के बाद रुख किया गया वैली फोर्ज नैश्नल पार्क का, जो अतुल के घर से बहुत पास है। बहुत ही सुरम्य स्थान है। हरियाली के बीच छोटी छोटी सड़कें, कुलाँचे भरते हिरन। यह पार्क एक ऐतिहासिक युद्धस्थल को सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया है। १८वीं शताब्दी में अमरीका के स्वाधीनता संग्राम की कई महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ यहाँ लड़ी गई थीं। उस समय की कई चीज़ें यहाँ रखी गई हैं।
खैर इसी सब में दिन समाप्त हो गया, और हम चले वापस घर की ओर। वार्तालाप चिट्ठों पर कम केन्द्रित रहा और एक दूसरे के बारे में जानने पर ज़्यादा।
तो यह था पहले चिट्ठाकार मिलन का लेखा जोखा। अगला कौन लिख रहा है। सुना है ठाकुर साहब भी भारत में हैं, इन्द्र अवस्थी भी। कब हो रहा है अगला सम्मेलन?
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