देस परदेस

इस सप्ताह पंकज जी के भूत ने अक्षरग्राम पर एक नया शोशा छोड़ा था — मानसिक लुच्चेपन का। बातों में फुरसतिया अनूप जी ने महेश भट्ट की पूजा का ज़िक्र किया। भई बॉलीवुड तो वैसे ही अपने आप में अलग संस्कृति है।

इस बीच देसी मूल्यों के पश्चिम में धुन्धला जाने और इससे माता-पिता-सन्तान की खींचातानी और कुण्ठा पर दो क़िस्से पढ़े पिछले दिनों। उनका ज़िक्र करना चाहूँगा। पहला क़िस्सा दरअसल एक कहानी है अभिव्यक्ति पर — काहे को ब्याही विदेश। मुद्दा है एक काशी पण्डित के अमरीका आने पर बेटी को खो देने का। दूसरा क़िस्सा है एक सच्चा समाचार बीबीसी पर — Marriages Made in Hell — कैसे इंगलैंड में पली एक लड़की को उसके माता-पिता धोखे से पाकिस्तान ले गए और वहाँ ब्याह दिया, और छोड़ दिया दुख झेलने को।

यह दोनों क़िस्से एक ही सिक्के के दो विपरीत पहलू दर्शाते हैं कि कुछ आप्रवासियों की पहली पीढ़ी को बच्चों के रस्ते बदल जाने से कितनी कुण्ठा होती है। साथ ही इस बात का ख़्याल आया कि विभिन्न लोग बच्चों और नए देश को कैसे बैलेन्स करते हैं।

कुछ लोग कहते हैं, “बच्चों के लिए ही तो आए हैं, ताकि उनका भविष्य सुधर जाए, वरना यहाँ क्या धरा है। बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ, हम तो चले अपने देस।”

कुछ कहते पाए जाएँगे, “बस रोज़ी रोटी की बात है, वरना बच्चे तो यहाँ बिगड़ जाते हैं। बच्चों के बड़े होने से पहले वापस चलेंगे।”

होता यह है कि बहुत कम लोग वापस जाते हैं। किसी भी बहाने से आए हों — पढ़ाई, पर्यटन, नौकरी, तबादला या कुछ और, बाइ-हुक-या-बाइ-क्रुक अटक जाने की ही कोशिश करते हैं। सालों तक एक वीज़ा कैटेगरी से दूसरी, फिर ग्रीन कार्ड और आखिर सिटिज़नशिप का चक्कर। कुछ अपवाद देखता हूँ तो मन प्रसन्न होता है, खुद चाहे जो करूँ। एक मित्र के बारे में सुना जो यहाँ कुछ साल रहे, यहाँ बच्चों को होम-स्कूलिंग कराई और सिटिज़नशिप लेकर वापस चले गए (यह मेरी समझ में नहीं आया कि फिर सिटिज़नशिप के पीछे क्यों थे, खैर कभी मिलेंगे तो पूछूँगा)। एक दंपति से मिला जो यहाँ रहते हुए दो शिशुओं के जन्म के लिए दो बार भारत गए ताकि वापस जाने का इरादा कमज़ोर न हो, जबकि लोग जान-बूझ कर बच्चों का जन्म अमरीका में कराने की कोशिश करते हैं।

ख़ैर, यह था पहला चिट्ठा। कुछ तो खुजली मिटी है। गाँव वालो क्या कहते हो इस विषय पर?


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Comments

  1. Anonymous Avatar
    Anonymous

    रमण जी,

    बच्चों को यहाँ पैदा करने का सीधा सा कारण है – कि कल अगर उनका आने का मन करे तो वो आराम से आ सकें जिस वीज़ा के चक्करों में हम परेशान हुए हैं वो न हों। पर अपनी स्वयं की नागरिकता की कहानी तो यही समझ आती है कि कल वापिस आ सकूँ। एक बात और अमरीकी पास्पोर्ट हो तो दुनिया के बहुत से देशों का वीज़ा नहीं लगवाना पड़ता एक किस्म से विश्व की नागरिकता मिल गई।

    पंकज

  2. Anonymous Avatar
    Anonymous

    रमण जी,

    बच्चों को यहाँ पैदा करने का सीधा सा कारण है – कि कल अगर उनका आने का मन करे तो वो आराम से आ सकें जिस वीज़ा के चक्करों में हम परेशान हुए हैं वो न हों। पर अपनी स्वयं की नागरिकता की कहानी तो यही समझ आती है कि कल वापिस आ सकूँ। एक बात और अमरीकी पास्पोर्ट हो तो दुनिया के बहुत से देशों का वीज़ा नहीं लगवाना पड़ता एक किस्म से विश्व की नागरिकता मिल गई।

    पंकज

  3. अनूप शुक्ला Avatar
    अनूप शुक्ला

    पता नहीं क्यों यह टिप्पणी कई बार कोशिश के बावजूद अक्षरग्राम पर नही चिपकी सो यहां चिपका रहे हैं स्वागत करते हुये रमण का:-

    अकेले पॉर्नोग्राफी देखना स्पाउस को छलना है कि नहीं यह बात तो ऐसी है कि दो लोग मिलकर पाप करें तो पाप पाप नही रहता.यह विचार करते समय यह भी सोचा जाये कि पोर्नोग्राफी का अर्थशास्त्र ,समाजशास्त्र क्या है.किन मजबूरियों के तहत लोग पोर्नोग्राफी फिल्मों में शूटिंग के लिये तैयार हो जाते हैं?

    आजतक में आज एक रिपोर्ट दिखाई गई.सीधी(मप्र)जिले की एक तहसील में महिलाओं को पति के अलावा ,ससुर तथा भसुर (पति के बडे भाई-जेठ)को भी संतुष्ट करना पड़ता है.पति आमतौर पर पत्नी से सात-आठ साल छोटा और आर्थिक रूप से पिता पर निर्भर होता है.अब लोग इसके खिलाफ जागरूक हो रहे हैं.

    पंकज,जिन शहजादी का जिक्र मैंने किया वो तुम्हारे घर की शहजादी नहीं वरन वो हैं जिनको तुम काफी कुछ हिंदी सिखाये पर अग्रेजी में भोजपुरी बोल के क्लास छोड़ गयीं.बकिया एतराज कथा खत्म होने का शंख हम बजा चुकें है.तुम्हारे पास जो एतराज बचा हो उसका अचार डाल लेना और हमें भी भेज एकाध छटांक अगर अच्छा बन जाये.

  4. अनूप शुक्ला Avatar
    अनूप शुक्ला

    पता नहीं क्यों यह टिप्पणी कई बार कोशिश के बावजूद अक्षरग्राम पर नही चिपकी सो यहां चिपका रहे हैं स्वागत करते हुये रमण का:-

    अकेले पॉर्नोग्राफी देखना स्पाउस को छलना है कि नहीं यह बात तो ऐसी है कि दो लोग मिलकर पाप करें तो पाप पाप नही रहता.यह विचार करते समय यह भी सोचा जाये कि पोर्नोग्राफी का अर्थशास्त्र ,समाजशास्त्र क्या है.किन मजबूरियों के तहत लोग पोर्नोग्राफी फिल्मों में शूटिंग के लिये तैयार हो जाते हैं?

    आजतक में आज एक रिपोर्ट दिखाई गई.सीधी(मप्र)जिले की एक तहसील में महिलाओं को पति के अलावा ,ससुर तथा भसुर (पति के बडे भाई-जेठ)को भी संतुष्ट करना पड़ता है.पति आमतौर पर पत्नी से सात-आठ साल छोटा और आर्थिक रूप से पिता पर निर्भर होता है.अब लोग इसके खिलाफ जागरूक हो रहे हैं.

    पंकज,जिन शहजादी का जिक्र मैंने किया वो तुम्हारे घर की शहजादी नहीं वरन वो हैं जिनको तुम काफी कुछ हिंदी सिखाये पर अग्रेजी में भोजपुरी बोल के क्लास छोड़ गयीं.बकिया एतराज कथा खत्म होने का शंख हम बजा चुकें है.तुम्हारे पास जो एतराज बचा हो उसका अचार डाल लेना और हमें भी भेज एकाध छटांक अगर अच्छा बन जाये.

  5. Jitendra Chaudhary Avatar
    Jitendra Chaudhary

    रमण भाई,
    सबसे पहले तो हिन्दी के ब्लाग जगत मे आपका स्वागत.
    भाई लोग कहते है, लोगो का चिट्ठा बाद मे चिपकता है,पहले मेरी बधाई और तारीफ चिपक जाती है, इस बार मै लैट हो गया, कोई बात नही, अब तारीफ कर देता हूँ.

    रमण भाई, अच्छा लिखे हो, यूँ ही लिखते रहो….
    जहाँ तक अप्रवासियों की बात है, तो मेरा इतना कहना है, कि विदेश मे बसने के बाद देश की याद तो आती है लेकिन देश मे बसने से डर लगता है, जाने अनजाने उनको भारत की बुराईयाँ दिखायी देने लगती है. वो दोनो हाथों मे लड्डू चाहते है. मै भी एक अप्रवासी भारतीय हूँ, मेरे साथ भी वही समस्या है, दिल मे उधेड़बुन लगी रहती है, वापस जाऊ या नही, फिर सोचते है, यह कर ले तो वापस चले जायेंगे…..वो कर ले तो चले जायेंगे….बस इसी तरह से बार बार तिथियां बदलते रहते है, पर वापस नही जाते.

  6. Jitendra Chaudhary Avatar
    Jitendra Chaudhary

    रमण भाई,
    सबसे पहले तो हिन्दी के ब्लाग जगत मे आपका स्वागत.
    भाई लोग कहते है, लोगो का चिट्ठा बाद मे चिपकता है,पहले मेरी बधाई और तारीफ चिपक जाती है, इस बार मै लैट हो गया, कोई बात नही, अब तारीफ कर देता हूँ.

    रमण भाई, अच्छा लिखे हो, यूँ ही लिखते रहो….
    जहाँ तक अप्रवासियों की बात है, तो मेरा इतना कहना है, कि विदेश मे बसने के बाद देश की याद तो आती है लेकिन देश मे बसने से डर लगता है, जाने अनजाने उनको भारत की बुराईयाँ दिखायी देने लगती है. वो दोनो हाथों मे लड्डू चाहते है. मै भी एक अप्रवासी भारतीय हूँ, मेरे साथ भी वही समस्या है, दिल मे उधेड़बुन लगी रहती है, वापस जाऊ या नही, फिर सोचते है, यह कर ले तो वापस चले जायेंगे…..वो कर ले तो चले जायेंगे….बस इसी तरह से बार बार तिथियां बदलते रहते है, पर वापस नही जाते.

  7. Atul Arora Avatar
    Atul Arora

    स्वागत है आपका हिंदी संसार में| रही बात देश गमन की तो जरा ईस नजरिए पर भी नजर डालिए|
    http://rojnamcha.blogspot.com/2004/12/blog-post_13.html

  8. Atul Arora Avatar
    Atul Arora

    स्वागत है आपका हिंदी संसार में| रही बात देश गमन की तो जरा ईस नजरिए पर भी नजर डालिए|
    http://rojnamcha.blogspot.com/2004/12/blog-post_13.html

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