यूँ तो अमरीका मे हर छोटी से छोटी बात समाचार बन जाती है। ऐसे मामले जिन को कुछ देशों में कोई पूछे भी नहीं, यहाँ महीनों तक सुर्खियों में रहते हैं, तब भी जब उस में शामिल सब लोग आम होते हैं। हाल में समाप्त हुए स्कॉट पीटरसन मामले को राष्ट्रीय मीडिया में जो प्रभुता मिली या माइकल जैकसन के मामले को जो रोज़ उछाला जा रहा है, मुझे लगता है दुनिया में और बहुत कुछ हो रहा है जो समाचार योग्य है। लेकिन कुछ समाचार ऐसे होते हैं जो किसी के निजी जीवन से सम्बन्धित होते हुए भी पूरी दुनिया को सोचने पर मजबूर करते हैं। टेरी श्यावो का मामला ऐसा ही है।
पन्द्रह साल पहले फ्लोरिडा की टेरी श्यावो, जो उस समय २७ साल की थी, को दिल का दौरा पड़ा और उसको अस्पताल पहुँचाया गया। दिल का दौरा पड़ने के कारण उस के दिमाग़ को ऑक्सीजन मिलने में रुकावट आ गई और एक तरह से वह मस्तिष्क से मर गई, जबकि कृत्रिम रूप से नली के द्वारा भोजन पहुँचाए जाने के कारण उस का शरीर जीवित रहा। शुरू में काफी इलाज करने की कोशिश की गई पर फिर चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए। आज पन्द्रह साल बाद टेरी श्यावो की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। पर हुआ यह है कि उस की ज़िन्दगी और मौत कोर्ट कचहरी और राजनीति का गरम मुद्दा बन गए हैं।
१९९८ में, टेरी की अधमरी स्थिति आरंभ होने के आठ साल बाद उसके पति माइकल श्यावो ने अदालत से फैसला देने को कहा कि चूँकि टेरी ऐसी अवस्था में कभी जीवित नहीं रहना चाहती, इसलिए उसकी भोजन डालने वाली नली हटा कर उस का कृत्रिम जीवन समाप्त कर दिया जाए। टेरी के माता पिता ने इसका विरोध किया, यह कह कर कि टेरी अभी जीवित है और ठीक हो सकती है। तीन वर्ष तक डाक्टरों, परिवार जनों, अन्य विशेषज्ञों की बातों पर विचार करने के बाद अदालत ने निर्णय दिया कि फीडिंग ट्यूब हटा दी जाए, जिस का पालन किया गया। टेरी के माता पिता फिर अदालत में गए और एक तरह के स्टे ऑर्डर द्वारा फीडिंग ट्यूब फिर लगवा दी। कोर्ट कचहरी होती रही और २॰॰३ में उन की सब अपीलें नामंज़ूर होने के बाद फीडिंग ट्यूब फिर हटवाई गई।
अब यह मुद्दा राजनीतिक तूल पकड़ चुका था। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के हामी लोग टेरी को मरने देना चाहते थे, और धार्मिक विचारों वाले लोग उसे ज़िन्दा रखना। वैसे यह विभाजन कोई निश्चित विभाजन नहीं है, और दोनों तरफ दोनों तरह के लोग हैं। स्वाभाविक है कि ज़्यादा डैमोक्रैट पहली श्रेणी में आते हैं और ज़्यादा रिपब्लिकन दूसरी में। इसके साथ रिपब्लिकन पार्टी का गर्भपात का मुद्दा भी एक तरह से जुड़ा हुआ है, क्योंकि दोनों उन के “प्रो-लाइफ” नारे के अन्तर्गत आते हैं।
खैर २॰॰३ में टेरी का पोषण दुबारा बन्द होने पर फ्लोरिडा के रिपब्लिकन गवर्नर जेब बुश (जो राष्टृपति बुश के भाई हैं) ने एक विशेष “टेरी कानून” पास करा के स्वयं को यह अधिकार दिलाया कि वह स्वयं उसका पोषण दुबारा शुरू करा सकें, जो उन्होंने किया। टेरी की खाने की नली फिर लग गई। कोर्ट कचहरी फिर भी चलती रही, और पिछले वर्ष फ्लोरिडा उच्च न्यायालय और केन्द्रीय उच्चत्तम न्यायालय ने “टेरी कानून” को ग़ैर कानूनी करार दिया। शिंडलर परिवार (टेरी के माइके) की हर अपील रद्द हुई और पिछले महीने कोर्ट ने निर्णय सुनाया कि १८ मार्च को टेरी की फीडिंग ट्यूब हटाई जाए। अब रिपब्लिकनों ने केन्द्रीय संसद में भी दाँव पेंच चलाए पर १८ मार्च को टेरी का पोषण फिर बन्द किया गया। कल “टेरी कानून २” पास किया गया ताकि शिंडलर परिवार फिर अपील कर सके। पर आज कोर्ट ने उन की अपील फिर ठुकरा दी। अभी भी उनके पास अपील करने के रास्ते हैं, और मामला शायद अभी और खिंचेगा।
इस मामले से कितने सारे प्रश्न उठते हैं। कौन सही है? क्या टेरी को मरने दिया जाना चाहिए, या ऐसे ही जीने दिया जाना चाहिए? अगर मेरे साथ ऐसी दुर्घटना हो तो मैं अपने साथ क्या किया जाना चाहूँगा? मैं तो चाहूँगा कि मेरे शरीर को कृत्रिम रूप से एक दिन भी जीवित नहीं रखा जाए, यदि मेरे सामान्य जीवन जीने की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गई हों। पर क्या मैंने यह कहीं लिख छोड़ा है? क्या मैं ने कोई वसीयत लिखी है, इस सब के बारे में? नहीं।
अन्तर्जाल और चिट्ठानगरी में भी, हर मुद्दे की तरह इस मुद्दे पर भी हर तरह का पहलू रखने वाले लोग हैं। लिंडसे बेयरस्टाइन अपने चिट्ठे पर टेरी के मरने के हक की सिफारिश करती है, तो यह कैथोलिक ब्लाग उसे जीवन दान देने के लिए संसद के हस्तक्षेप की सिफारिश करता है। आप क्या कहते हैं?
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