अगर तुम आ जाते एक बार
काँटे फिर न पीड़ा देते
आँसू भी मोती बन जाते
तेरी बाहें जो बन जाती मेरे गले का हार
अगर तुम आ जाते एक बार
जीवन का सच अतिसय सुन्दर
पा जाते हम दोनों मिलकर
उजड़े दिलों में छा जाती मदमाती नई बहार
अगर तुम आ जाते एक बार
आँखों के सतरंगी सपने
सच हो जाते जो तुम होते
राहें फिर न तन्हा रहतीं
तय हो जातीं हंसते गाते
इन्द्रधनुष के रंगों से फिर हो जाता शृंगार
अगर तुम आ जाते एक बार
आभास अधूरेपन का मिटता
एकाकीपन फिर क्यों डसता
तेरी आँखों में मिल जाता मन को मन का उपहार
अगर तुम आ जाते एक बार
– कैलाश चन्द्र गुप्ता (चन्द्रगुप्त)
कैलाश को चेतावनी दी गई थी, कि यदि नहीं लिखोगे, तो हम तुम्हारा लिखा छापना शुरू कर देंगे। यह पहली बानगी है।
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