आज सुबह टीवी पर एक रिपोर्ट देखी जिस का शीर्षक था हरीकेन बेबीज़, यानी तूफान के बच्चे। ठीक नौ महीने पहले फ्लोरिडा में भीषण समुद्री तूफान आया था, और आजकल क्षेत्र के अस्पतालों में नवजात शिशुओं की संख्या में १५-२० प्रतिशत बढ़ोतरी दिख रही है। एबीसी टीवी की साइट पर तो इस खबर का लिंक नहीं मिला, पर एक और साइट पर ऐसी ही रिपोर्ट मिली। इस में यह भी बताया गया है कि बढ़ते बच्चों की आमद की अपेक्षा में अस्पताल में सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है।
हुआ यूँ कि समुद्री तूफान के चलते क्षेत्र के लोगों को घरों से निकाल कर सामुदायिक भवनों में रखा गया। कई लोग जो घरों में भी थे, उन के घरों में बिजली गुल थी। करने को कुछ था नहीं, तो अब क्या करते — इसलिए प्रजनन क्रिया में लग गए। कई ऐसे परिवारों के इंटरव्यू लिए गए और सभी बता रहे थे कि किन हालात में उन्होंने गर्भ धारण किए। कइयों के लिए तो कैंडल लाइट से और रोमान्स पैदा हुआ।
किसी गाँव की बढ़ती आबादी के बारे में एक पुराना लतीफा याद आता है, जिस में खोज करने पर कारण पता चला कि गाँव से देर रात एक रेलगाड़ी गुज़रती थी, जो सोते जोड़ों को जगा देती थी।
अब आप ही सोचिए, भारत की बढ़ती जनसंख्या का किसे दोष दें? जहाँ लाखों घरों में रोज़ तूफानी हालात होते हैं। बिजली होती नहीं, दनदनाती रेलें पास से गुज़रती हैं। लोग करें तो क्या करें।
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